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थाने में कैफे, फरियादियों की 'कैंटीन लाइफ' भोपाल का ‘शक्ति कैफे’ या पीड़ितों का नया इंतजारगाह?

11 Dec 2024

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Anam Ibrahim 

7771851163


*जनसम्पर्क Life*

Mukesh Singh 

Zafeer khan 


*भोपाल/मप्र:* भोपाल, महिला थाना। जहां एक ओर इंसाफ की आस लिए महिलाएं अपनी फरियाद लेकर कतार में खड़ी रहती हैं, वहीं अब इसी थाने में उनके इंतजार को "स्वाद और आराम" से भरने की योजना बनाई गई है। जी हां, महिला थाने में शक्ति कैफे का उद्घाटन हो चुका है। लेकिन सवाल यह है कि ये कैफे न्याय के रास्ते में राहत बनेगा या पीड़ित महिलाओं के सब्र की और परीक्षा लेगा?


थाना, जो पहले ही इंसाफ की धीमी गति और लंबी लाइन के लिए कुख्यात है, अब वहां कैफे का स्वागत हो रहा है। भोपाल पुलिस और MANIT के छात्रों की इस अनोखी सोच ने "वेस्ट मटेरियल" को इको-फ्रेंडली कैंटीन में बदल दिया है। हालांकि, इसे देखकर यह जरूर कहा जा सकता है कि इंतजार करने वालों को अब भूखे पेट शिकायत दर्ज कराने की नौबत नहीं आएगी।


*कैफे में चाय, लेकिन इंसाफ का क्या?*


जहां एक ओर महिलाओं को उनके केस की सुनवाई के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है, वहीं अब इस इंतजार को चाय और स्नैक्स के साथ "मधुर" बनाने की कोशिश हो रही है। इस योजना के तहत दावा किया गया है कि कैफे अपराध पीड़ित महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाएगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या यही वह प्राथमिकता है, जिसकी ज़रूरत पीड़ितों को है?


*थाने में कैफे, फरियादियों की 'कैंटीन लाइफ'*



इस कैफे में महिला संचालिका होंगी और यह "स्वालंबन" का प्रतीक बताया जा रहा है। लेकिन जब महिलाएं न्याय पाने के लिए थाने आती हैं, तो क्या उन्हें रिफ्रेशमेंट की ज़रूरत है या फिर त्वरित कार्रवाई की?


थाने में पहले से ही जगह और समय की कमी है। हर कोने में फाइलों के ढेर, पीड़ित महिलाओं की भीड़ और इंसाफ की धीमी चाल पहले से ही चुनौती है। ऐसे में यह कैफे पुलिस प्रशासन की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करता है।


*मजाक, जो हकीकत बन गया*


भोपाल के इस अकेले महिला थाने में जहां इंसाफ पाने के लिए महिलाएं घंटों खड़ी रहती हैं, अब वहां कैफे की चाय पीते हुए अपनी बारी का इंतजार कर सकती हैं। अगर आपके पास समय है तो चाय, समोसा और वेटिंग का "कॉम्बो ऑफर" भी मिल सकता है।


*न्याय से पहले चाय*


भोपाल पुलिस ने इसे सामुदायिक सेवा का हिस्सा बताया है। लेकिन इस पूरी योजना पर स्थानीय नागरिकों और महिलाओं की राय कुछ अलग है। "हमें चाय नहीं, इंसाफ चाहिए," एक पीड़िता ने हताशा में कहा।


महिला थाने में कैंटीन के उद्घाटन से एक बात तो साफ है—भोपाल पुलिस फरियादियों को लंबे इंतजार के दौरान भूखा नहीं छोड़ना चाहती। लेकिन न्याय के इंतजार में बनी इस "शक्ति कैफे" की योजना, सिस्टम के धीमे और लचर रवैये पर व्यंग्य की तरह लगती है।


*आखिरी सवाल*


क्या यह कैफे महिलाओं की मदद करेगा या फिर यह थाने में एक और लाइन खड़ी कर देगा? जब इंसाफ की भूख खत्म हो और चाय की तलब बढ़े, तो शक्ति कैफे में आपका स्वागत है!

मध्यप्रदेश


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