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साइबर क्राइम जागरूकता: मस्ती के बीच सच्चाई से मुंह मोड़ती इंदौर पुलिस

14 Dec 2024

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Anam Ibrahim 

7771851163


*जनसम्पर्क Life*

Mukesh singh 


*इंदौर/मप्र* इंदौर। श्री दयानंद हायर सेकंडरी स्कूल के वार्षिकोत्सव के मौके पर बच्चों और अभिभावकों ने जहां मनोरंजन का भरपूर आनंद उठाया, वहीं इंदौर पुलिस ने साइबर अपराधों के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। लेकिन सवाल यह उठता है कि इन "जागरूकता अभियानों" का असल में कितना असर होता है, और क्या इंदौर पुलिस अपनी विफलताओं को इन आयोजनों के पीछे छुपाने की कोशिश कर रही है?


इंदौर पुलिस ने एक बार फिर “साइबर पाठशाला” का मंच तैयार किया, जहां मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे एडीशनल डीसीपी क्राइम श्री राजेश दंडोतिया ने बच्चों और अभिभावकों को तकनीकी सतर्कता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने ऑनलाइन ठगी, फाइनेंशियल फ्रॉड और सोशल मीडिया पर सावधान रहने की सलाह दी। लेकिन ये नसीहतें कितनी कारगर साबित हो रही हैं, जब आए दिन साइबर अपराध के मामलों की गूंज थानों से लेकर सोशल मीडिया तक सुनाई देती है?


*खोखले वादों के बोझ तले डूबती इंदौर पुलिस*


इंदौर पुलिस द्वारा हेल्पलाइन नंबर (1930 और 7049124445) जारी करने और शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया समझाने का प्रयास किया गया। लेकिन ये नंबर और प्रक्रियाएं पीड़ितों को न्याय दिलाने में कितनी सक्षम हैं, इसका अंदाजा हाल ही में बढ़ते साइबर क्राइम के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। हर दिन दर्जनों लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं, और इनमें से कई मामलों में पुलिस की जांच अधूरी या निष्प्रभावी रहती है।


*पाठशालाओं में ज्ञान, हकीकत में असफलता*



पुलिस अधिकारियों के "रोचक तरीकों" से समझाई गई बातें सुनने में जितनी आकर्षक लगती हैं, वास्तविकता उतनी ही कड़वी है। शिकायत दर्ज कराने के बाद भी पीड़ितों को ठोस कार्रवाई का इंतजार करना पड़ता है। जागरूकता अभियानों की इस चमक-धमक के पीछे एक बड़ी विफलता छुपी हुई है: अपराध रोकने और दोषियों तक पहुंचने में पुलिस की नाकामी।


*क्या सचमुच यह जागरूकता की जीत है?*


जब बच्चे और अभिभावक मनोरंजन के बीच साइबर अपराधों पर चर्चा करते हैं, तो यह केवल एक “इवेंट” बनकर रह जाता है। वहीं, असल जिंदगी में पीड़ित न्याय के लिए भटकते हैं। इंदौर पुलिस के प्रयास, चाहे जितने भी "रोचक" क्यों न हों, तब तक विफल रहेंगे जब तक साइबर अपराधियों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की जाती।


*निष्कर्ष:*


इंदौर पुलिस के लिए यह समय खुद को आत्ममंथन करने का है। क्या "साइबर पाठशाला" के माध्यम से प्रचार करना उनकी जिम्मेदारी से बचने का तरीका है, या वे असल में साइबर अपराधों से निपटने के लिए ठोस कदम उठा रही हैं? जनता को जागरूक करना सराहनीय है, लेकिन जागरूकता तब तक व्यर्थ है, जब तक पुलिस खुद अपराध रोकने में नाकाम रहती है।

मध्यप्रदेश


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