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09 Dec 2024
जनसम्पर्क Life
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*भोपाल/मप्र:* भोपाल: इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल और तकनीकी निर्भरता के इस युग में साइबर अपराध एक गंभीर चुनौती बन गया है। भोपाल पुलिस कमिश्नरेट ने इस संकट से निपटने के लिए एक तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह प्रयास साइबर अपराधियों के बढ़ते आतंक को रोकने के लिए पर्याप्त है?
*"सिर्फ कागज़ी घोड़े दौड़ रहे हैं"*
भोपाल पुलिस के मुताबिक, शहर के 37 थानों में साइबर हेल्प डेस्क स्थापित किए गए हैं और 400 पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। लेकिन क्या वाकई ये डेस्क और ट्रेनिंग साइबर अपराध के शातिर दिमागों को मात दे पाएंगे? वास्तविकता यह है कि साइबर अपराधी हर दिन नए तरीके ईजाद कर रहे हैं, और भोपाल की पुलिस अब भी "पासवर्ड मजबूत करें" जैसे प्राचीन सुझावों पर अटकी हुई है।
*शिकायतों की भरमार, समाधान की कमी*
भोपाल में एकमात्र साइबर थाना पहले से ही पेंडिंग शिकायतों के बोझ तले दबा है। अब 5 लाख रुपये तक की ठगी की शिकायतें थानों में दर्ज करने की नई व्यवस्था लागू की गई है। हालांकि, क्या यह सिर्फ शिकायतें बढ़ाने का जरिया बनकर रह जाएगा, जबकि समाधान के लिए पर्याप्त संसाधन और विशेषज्ञता अब भी एक सपना है?
*तकनीकी ज्ञान: बस नाम का ही खेल?*
पुलिस अधिकारियों को "फेसबुक, इंस्टाग्राम से जानकारी मंगाना" और "डेटा रिकवरी" सिखाने का दावा किया गया है। लेकिन क्या इन कागजी प्रशिक्षण सत्रों से पुलिस वाकई उस स्तर की तकनीकी महारत हासिल कर पाएगी, जो साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए जरूरी है? या फिर यह सिर्फ बजट का दिखावटी उपयोग बनकर रह जाएगा?
*आम जनता पर असर: अपराधी खुलेआम, पीड़ित परेशान*
साइबर अपराधियों के नए-नए तरीकों का शिकार भोपाल के आम नागरिक हो रहे हैं। बैंक अकाउंट से पैसे गायब होना, फिशिंग स्कैम और फर्जी लोन ऐप्स जैसी समस्याएं हर गली-मोहल्ले में सुनने को मिल रही हैं। लेकिन जब पीड़ित थाने पहुंचते हैं, तो उन्हें "ऑनलाइन फॉर्म भरने" और "सब्र रखने" का उपदेश दिया जाता है।
*नसीहतें जो हर बार दोहराई जाती हैं*
पुलिस ने मजबूत पासवर्ड रखने, अज्ञात लिंक पर क्लिक न करने और सोशल मीडिया पर सावधानी बरतने की नसीहत दी है। यह बातें हर साइबर क्राइम जागरूकता पोस्टर पर लिखी होती हैं, लेकिन इनके वास्तविक क्रियान्वयन में पुलिस और जनता दोनों असफल दिखते हैं।
*समाप्ति: क्या वाकई कोई समाधान निकलेगा?*
भोपाल पुलिस के प्रयास सराहनीय हो सकते हैं, लेकिन जब तक वास्तविक, जमीनी कार्रवाई और तकनीकी विशेषज्ञता का विकास नहीं किया जाता, तब तक साइबर अपराधियों की दहशत बरकरार रहेगी। क्या यह तीन दिवसीय कार्यशाला सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी, या भोपाल की पुलिस साइबर अपराध की इस जंग में सचमुच अपनी पकड़ मजबूत करेगी? यह देखने वाली बात होगी।
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