【 RNI-HIN/2013/51580 】
【 RNI-MPHIN/2009/31101 】
29 Apr 2023
Anam Ibrahim
7771851163
भारत/बिहार: इनदिनों देशभर में फैलता जातिवाद का ज़हर आपसी नफरत में तब्दील हो रहा है ऐसे में देश की अदालतें भी जातिवाद को लेकर फिक्रमंद नज़र आ रही है हाल ही में
बिहार के हर क्षेत्र मे इतना जातिवाद फेल चुका है कि सुप्रीम कोर्ट ने पटना HC से जाति सर्वेक्षण पर रोक के लिए दायर याचिका पर पुनः विचार करने की हिदायत दी है । बिहार के पटना में मौज़ूद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करते हुए राज्य में चल रहे जाति सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
लिहाज़ा सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जातिवाद तो बिहार के अंदर बड़े पैमाने पर चल रहा है जो नौकरशाही व राजनीति हर क्षेत्र में प्रचलित हो चुका है।
जस्टिस एमआर शाह और जेबी पारदीवाला की पीठ ने राज्य में चल रहे जाति सर्वेक्षण पर रोक लगाने की याचिका पर विचार किया।
न्यायमूर्ति शाह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, "वहां बहुत अधिक जातिवाद है। हर क्षेत्र में। नौकरशाही, राजनीति, सेवा ।"
दरअसल पटना उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपील प्रस्तुत करने के लिए सर्वेक्षण पर कोई Interim रोक लगाने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत देने या न देने का फैसला लेने से पहले उच्च न्यायालय को गुण-दोष के आधार पर मामले की सुनवाई करनी चाहिए थी।
आगे न्यायमूर्ति शाह ने कहा की "किसी भी तरह से, (याचिका के लिए) अंतरिम राहत पर योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। एक खंडपीठ इस पर विचार करे।"
क्योंकि उच्च न्यायालय ने ऐसा नहीं किया था, इसलिए पीठ ने उच्च न्यायालय से शीघ्रता से ऐसा करने को कहा है।
पीठ ने अपने आदेश में आगे कहा की, 'हम स्पष्ट करते हैं कि हमने गुण-दोष के आधार पर कुछ नहीं कहा है और इस पर उच्च न्यायालय को फैसला करना है।'
बतादें की हाल की इस याचिका को यूथ फॉर इक्वेलिटी द्वारा दायर किया गया था, ये एक भारतीय संगठन है जो जाति आधारित नीतियों और आरक्षण के खिलाफ काम करने का दावा करता है।
चुनांचे अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता-संगठन की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने की जिन्होंने तर्क दिया कि यह एक गंभीर मामला है, जिसे खासतौर पर चुनाव के मद्देनजर जातिगत जनगणना के लिए सर्वेक्षण किया जा रहा है। लंबे समय से बिहार राज्य में जातिवाद बेहद उग्र होता जा रहा था।
बिहार HC के वकील ने जानकारी दी कि यहां सरकार के कई मनमाने कदम को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की जा रही हैं।
हालांकि, वकील की बात पर न्यायमूर्ति परदीवाला ने राज्य के वकील से पूछा कि वह इस सर्वेक्षण को करने में आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों कर रहे हैं।
बहरहाल बाद में पीठ ने याचिकाकर्ता को तत्काल अंतरिम राहत परोसते हुए सुनवाई के लिए पटना उच्च न्यायालय के सामने एक आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता देदी साथ ही एक आदेश पारित किया, जिसमे उच्च न्यायालय को तीन दिनों के भीतर अधिमानतः मामले का निपटारा हल करने के लिए कहा।
इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस साल जनवरी में जस्टिस बीआर गवई और विक्रम नाथ की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राज्य में जाति जनगणना की शुरवात करने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दे डाली थी व तीन जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर विचार करने से शिरे से इनकार कर दिया था।
वैसे इस बार खंडपीठ ने याचिकादाताओं को पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की खुली स्वतंत्रता दे दी है । अब देखना ये है कि जातिवाद के जहर को अदालतों के फैसले पी कर ख़त्म कर देते हैं या यह जातिवाद का सियासी ज्वारभाटा अपने जबड़ों में जकड़ लेता ह
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