【 RNI-HIN/2013/51580 】
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25 Sep 2018
भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बीते 13 वर्षो से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सत्तारूढ़ है। इस दौरान कभी भी मंत्रियों-मुख्यमंत्री और अफसरों के बीच सीधे तौर पर दूरियां नजर नहीं आईं, मगर अब सीधे और साफ तौर पर सामंजस्य का अभाव दिखने लगा है, यही कारण है कि मंत्री कुछ कहते हैं तो मुख्यमंत्री की बात कुछ और होती है।
राज्य में शिवराज सरकार का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा है। यही कारण है कि लगातार विधानसभा और लोकसभा के दो-दो चुनाव में जनता ने भाजपा का साथ दिया। इतना ही नहीं उप-चुनाव में भी भाजपा को सफलता मिली और कई नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए।
भाजपा के बढ़ते प्रभाव का एक बड़ा कारण मुख्यमंत्री चौहान की योजनाएं रही हैं, तो साथ ही उनका आमजन के प्रति अपनेपन का प्रदर्शन भी इसका करण रहा है। मगर बीते दो माह के दौरान हुई घटनाओं ने जहां सरकार की छवि पर असर डाला है, वहीं सरकार में आपसी सामंजस्य का अभाव साफ नजर आया।
राज्य में जून माह में किसान आंदोलन होता है और सरकार इससे बेखबर बनी रहती है। इसे खुफिया तंत्र की असफलता माना जा रहा है, मगर सरकार ऐसा नहीं मानती है। इस आंदोलन के दौरान मंदसौर में किसानों पर गोली चलाई जाती है, इसमें पांच किसान मारे जाते हैं, लेकिन राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह कहते हैं कि पुलिस ने गोली नहीं चलाई।
तीन दिन गुजर जाने के बाद गृहमंत्री स्वीकारते हैं कि गोली पुलिस ने ही चलाई थी, साथ ही अफसरों द्वारा सही जानकारी न देने की बात कहते हैं। वहीं डेढ़ माह बाद विधानसभा में उन्होंने माना कि तीन किसान सीआरपीएफ और दो पुलिस की गोली से मारे गए।
किसान लगातार गोलीबारी के लिए पुलिस पर आरोप लगाते रहे और सरकार व पुलिस यही कहती रही कि गोली पुलिस ने नहीं चलाई, भीड़ में से ही चली। बात जब बिगड़ने लगी तो सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और वास्तविकता स्वीकारनी पड़ी, जिससे किसानों में गुस्सा और बढ़ गया।
विधानसभा में कांग्रेस द्वारा किसान आंदोलन और मंदसौर गोलीकांड का मामला स्थगन के जरिए उठाया गया तो गृहमंत्री सिंह ने बताया कि आंदोलन की जानकारी उन्हें पहले से थी। किसान आंदोलन के दौरान चार जून को मुख्यमंत्री चौहान द्वारा किसानों की मांगे मान लेने के बाद कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने इस आंदोलन पर कब्जा कर लिया। वहीं मंदसौर में असंतुष्ट किसान संगठनों से जुड़े लोग और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने हिंसा की। उसी के चलते छह जून को पुलिस ने गोली चलाई और पांच लोग मारे गए। सिंह ने कहीं भी कांग्रेस का हिंसा में हाथ होने का जिक्र नहीं किया।
वहीं, मुख्यमंत्री चौहान ने विधानसभा में कहा कि इस आंदोलन की जानकारी उन्हें 31 मई व एक जून को हुई, क्योंकि यह अलग तरह का आंदोलन था। किसानों की मांगे चार जून को मान कर आठ रुपये किलो प्याज खरीदी का फैसला लिया गया। उसके बाद पांच जून से आंदोलन हिंसक होने लगा, कांग्रेस नेता के उकसाने पर वाहन में आग लगाई गई, यह वीडियो वायरल हुआ। उसी दिन आष्टा में पुलिस अफसर के हाथ तोड़े गए।
कांग्रेस के विधायक तक आंदोलन को भड़काते रहे, आग लगाने का काम कांग्रेस ने किया। मेरा दावा है कि राज्य का किसान कभी भी हिंसक नहीं हो सकता, योजनाबद्ध तरीके से साजिश रचकर आंदोलन को हिंसक किया गया। यहां बताना लाजिमी होगा कि मुख्यमंत्री ने पूर्व में आंदोलन को हिंसक बनाने का काम तस्करों द्वारा किए जाने की बात कही थी।
मुख्यमंत्री द्वारा कांग्रेस पर लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने शनिवार को आईएएनएस से कहा कि कांग्रेस तो किसान आंदोलन में छह जून के बाद शामिल हुई थी, क्योंकि मंदसौर में किसानों पर छह जून को गोली चलाकर पांच किसानों को मौत के घाट उतार दिया गया था। सरकार के भीतर ही सामंजस्य नहीं है। कोई कहता है कि असामाजिक तत्वों का हाथ है, तो कोई तस्कर और कांग्रेस के हाथ की बात करता है। कोई कहता है कि उसे पहले से आंदोलन की जानकारी थी, तो कोई 31 मई और एक जून बताता है। यह कैसा प्रदेश हो गया है, जहां के गृहमंत्री को ही पता नहीं होता कि किसान आंदोलन में गोली किसने चलाई। वहीं मुख्यमंत्री को आंदोलन की खबर एक-दो रोज पहले ही लगती है।
सूत्रों का कहना है कि इन दिनों राज्य सरकार और कुछ अफसरों में अनबन चल रही है, जिसके चलते बेहतर सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है। हो सकता है कि सरकार कोई बड़ा फैसला आने वाले दिनों में लेकर एक महकमे के प्रमुख को रुखसत तक कर दे। ऐसा इसलिए क्योंकि उस अफसर ने सरकार की मनमाफिक काम नहीं किया।
जानकारों की मानें तो राज्य में सामंजस्य का बिगड़ना ठीक नहीं है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि सरकार के लोग वास्तविकता से बेखबर रहें और सरकार की ओर से एक मामले में अलग-अलग बयान आए। यह जान लेना चाहिए कि बिगड़ते सामंजस्य का कुछ अफसर और अन्य लोग लाभ उठाने से नहीं चूकेंगे। यह संकेत कम से कम सरकार के लिए तो अच्छे नहीं हैं।
मध्यप्रदेश सियासत बीजेपी दफ़्तर
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