【 RNI-HIN/2013/51580 】
【 RNI-MPHIN/2009/31101 】
18 Oct 2019
जनसम्पर्क-life
अब तक क्यों नही हुआ योगी, लक्ष्मी नारायण और बुक्कल नवाब पर मुक़दमा दर्ज़??
अनम इब्राहिम
हिंदुस्तान: सियासत की सड़न से सड़ी हुई बदबूदार नालियों का रुख अब पवित्र धार्मिक गलियों की तरफ़ तेज़ी से मुड़ता चला जा रहा है। आस्थाओं के तमाम आशियाने सियासी ज़ुबानों से अपवित्र होते चले जा रहे है बेलगाम बड़बोले नेता सुर्खियों की सलवार में ज़बरन मुहं फसाकर फ़साना बुनने लग रहे है। हैरत की बात है देश में सत्ता कि सवारी कर रहे मोदी के रथ के एक एक पहिये वक़्त के साथ साथ कमज़ोर होते जा रहे, टूटते जा रहे हैं वजह सिर्फ़ पार्टी में मुट्ठीभर बड़बोलो की बेलगाम ज़ुबान है जिससे मज़हबी छेड़छाड़ के लिए नश्तर की तरह लफ्ज़ निकलते है जो बीजेपी के मतों को चारे की तरह चबा डाल रहे है। थोड़े समय पहले ही उत्तरप्रदेश के राजभोगी योगी को मुख्यमंत्री के शाही इंतेज़ामो के बीच लज़्ज़तदार पकवान हज़म नही हो पा रहे थे कि तभी उन्होंने जातपात की हाजमोला खाकर सियासत में शरारत की हद पार कर डाली और करोड़ो लोगो के पूजनीय हनुमान जी की जात पर सवाल खड़े करते हुए उन्हें ब्राह्मण से दलित करार दे डाला जिसके बाद योगी के बयान को मीडिया ने आड़े हाथ लेते हुए पूरी दुनिया मे परोस के पेश किया। बहरहाल हनुमान जी के नाम पर मुशायरा लूटने भाजपा के दूसरे कद्दावर नेता भी कूद पड़े, एक बीजेपी के रत्न बने मंत्री ने जोश में दलीलें देंते हुए बयान जारी कर दिया की बजरंगबली तो जाट हैं, क्योंकि जाट ही दूसरों के मामले में अपनी टांग फंसाता है। हनुमान जी मेरी जाति के थे यूपी बीजेपीमंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण के बयान का बारूद अभी पूरी तरह फैला भी नही था कि भाजपा के मुस्लिम MLC बुक्कल नवाब ने आग में घी डाल के आस्था से जुड़े मामले को और भी भड़का दिया लिहाज़ा इस तरह किसी भी मज़हब के धार्मिक इबादती क़िरदारों की शख्सियतों को सियासी बयानबाज़ी के कठघरे में खड़ा कर के उनके पवित्र नाम की आबरू को रेजा-रेजा कर तारतार करने के बयान सियासी गलियारों में देश के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी छीन लेना चाहिए। मज़हबी मसलों में टांग अड़ाने का हक़ किसी पार्टी के नेताओ के पास नही रहना चाहिए। मज़हब की अच्छी बातें सामूहिक रूप से धार्मिक स्थलों के भीतर ही अच्छी लगती है उसे सियासत की महफ़िल में उछालकर इस तरह रुसवा नही करना चाहिए। जब जब धार्मिक दलाल सियासत के आसमान पर मनघड़ंत व भडकाऊ शब्दों के खंज़र फेकते रहेंगे तब तब ना जाने कितने आसमानी आस्था के दीवानों के दिल ज़ख्मी हो होते रहेंग। खैर अभी तो 19 चुनावी सियासत के शोले बाक़ी.. आगे आगे देखिए होता है क्या?
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